
Indian Culture भारतीय संस्कृति
मधुमक्खियाँ विश्व की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करतीं हैं। हमारे भोजन का एक तिहाई भाग मधुमक्खी द्वारा परागित फसलों से प्राप्त होता है। कुल 86% फूलों वाले पौधे व 75% खाद्य फसलें प्रजनन हेतु मधुमक्खियों व अन्य परागणकर्ता कीटों पर निर्भर हैं। बढ़ती जनसंख्या व भोजन की मांग ने मधुमक्खियों पर हमारी निर्भरता को और भी बढ़ा दिया है।
विश्व भर में इन मधुमक्खियों व परागण करने वाले कीटों की संख्या में भारी कमी दर्ज की गई है। इसका मुख्य कारण उनके प्राकृतिक वास का नुकसान, भूमि प्रयोग में बदलाव, नई व घातक हमलावर नस्लें, जलवायु परिवर्तन, रासायनिक कीटनाशकों का विषैलापन विशेषतः नियोंनिकोटिनाइड कीटनाशकों का प्रयोग। इन जहरीले कीटनाशकों के दुष्प्रभाव के कारण यूरोपीय यूनियन देशों में इन्हें प्रतिबंधित किया जा चुका है।
मधुमक्खियों द्वारा परागण से फसलों की न केवल उत्पादकता बल्कि गुणवत्ता में भी भारी वृद्धि होती है। प्राकृतिक कृषि में केवल अनाज वाली फसलें न लेकर सह फसली के…
गावो भगो गाव इन्द्रो मे - #यजुर्वेद ४३/२३ "गाय ही मेरा ऐश्वर्य, गाय ही मेरा भाग्य है।"
आज 296 दिनों की अवधि में हमारी गाय का प्रसव हुआ ।भारतीय सर्वांग सुंदर देसी गोवंश के लिए है यह गर्भकाल की अधिकतम अवधि है। हमारी गैया मैया ने सुंदर नर बछड़े (Male calf) को जन्म दिया। प्रसव सामान्य सरल रहा कोई कठिनाई उत्पन्न नहीं हुई गाय बहुत संवेदनशील जीव है।
गायों का प्रसव तीन चरणों में पूरा होता है। प्रसव की पहली स्टेट 2 से 6 घंटे के बीच होती है जब गाय की बच्चेदानी का मुंह सर्विस का चौड़ीकरण होता है वह खुलता है सफेद मोटे धागे नुमा डिस्चार्ज निकलता है। जिससे नवजात बच्चा आसानी से रिप्रोडक्टिव ऑर्गन से निकल सके। इस दौरान गाय खाना पीना छोड़ देती है वृत्ताकार घूमती है कभी उठती है बैठती है बेहद एकाकी महसूस करती है। दूसरी अवधि 1 घंटे में पूर्ण हो जाती है पहल…

"क्या हमारे बुजुर्ग #Google से कम बड़े मौसम विज्ञानी रहे हैं"
महुए के पेड़ को देखकर आदिवासी बुजुर्ग मौसम के पूर्वानुमान की बात बड़े रोचक तरीके से बताते हैं। जिस साल गर्मियों में महुए के पेड़ पर खूब सारी पत्तियों को देखा जाता है यानी जब महुआ गर्मियों में हराभरा दिखता है तो अनुमान लगाया जाता है कि उस साल मानसून बहुत अच्छा रहेगा। गर्मियों में बांस की पत्तियों में हरियाली या हरापन देखा जाना मानसून के हिसाब से बुरी खबर लाता है यानी उस साल सूखा पड़ने जैसे हालात होने की संभावनांए होती है और बांस में हरियाली उस क्षेत्र में बची कुची फसलों पर चूहों के आक्रमण की अगाही भी करती है। बेर के पेड़ पर फलों की तादाद लदालद हो तो #पातालकोट घाटी के बुजुर्ग आदिवासी मानते हैं कि उस वर्ष मानसून सामान्य रहने की संभावना है। दूर्वा या दूब घास गर्मियों में खूब हरी भरी दिखायी…